स्वतंत्रता सेनानी पेंशन की मांग को लेकर 99 साल के सूबेदार बलवंत रावत बैसाखियों के सहारे दर-बदर भटकते.DM ने गौर से फरियाद सुन आवश्यक कार्यवाही का दिया आश्वासन..

देहरादून: स्वतंत्रता सेनानी पेंशन की मांग को लेकर 99 साल के सूबेदार बलवंत सिंह रावत उम्र के इस पड़ाव में बैसाखियों सहारे दर-बदर भटकने को मजबूर हैं.28 अप्रैल 1942 में रॉयल गढ़वाल राइफल में भर्ती हुए बलवंत सिंह रावत कहना है कि उन्होंने देश सेवा के दौरान दिलदहला देने वाली ऐसी कई भयावह लड़ाइयां लड़ी जिसका कोई आज अंदाजा भी नहीं लगा सकता.इसके बावजूद उन्हें स्वतंत्रता सेनानी पेंशन से वंचित रखा गया है.अपनी पेंशन की मांग को लेकर सोमवार जनसुनवाई कार्यक्रम के दौरान 99 वर्षीय बलवंत सिंह रावत पूरे देशभक्ति के जज़्बे के साथ बकायदा फौजी यूनिफॉर्म में तमगे लटकाकर बैसाखियों के सहारे जिलाधिकारी के पास गुहार लगाने पहुंचे. मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएम सोनिका ने भी न सिर्फ बड़े गौर से प्राथमिकता के तौर पर बलवंत सिंह रावत के विषय को सुना.बल्कि उन्हें आश्वासन देते हुए सैनिक कल्याण बोर्ड और संबंधित अधिकारियों को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए. हालांकि जानकार मान रहे हैं कि सूबेदार बलवंत सिंह रावत की स्वतंत्राता पेंशन को लेकर कुछ कुछ तकनीकी कारण है. जिसमें मुख्यतः पता चलता है कि उन्होंने आजादी से पूर्व आर्मी और दूसरे वर्ड वार में सेवाएं दी.

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सूबेदार बलवंत सिंह का 1942 से लेकर 1980 तक देश सेवा का सफर

जानकारी के मुताबिक 99 वर्षीय रिटायर्ड सूबेदार बलवंत सिंह रावत मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले हैं. वर्तमान समय में वह आर्केडियां ग्रांट के बड़ोंवाला में परिवार के साथ रहते हैं.बलवंत सिंह 28 अप्रैल 1942 में तत्कालीन नाम रॉयल गढ़वाल रेजीमेंट में ब्वाईज के रूप में A कम्पनी लैंसडाउन भर्ती हुए थे.26 अप्रैल 1946 को एक रेगुलर सिपाही के तौर पर आने से गढ़वाल राइफल की B कंपनी में 1 सितंबर 1945 तक कार्यरत रहे. बलवंत सिंह के अनुसार इस सर्विस पीरियड के दौरान उनके अच्छे कार्य को देखते हुए लैंसनायक बनाया गया. इसके बाद उसी पीरियड में उन्होंने वेपन एवं गैस कोर्स स्टर्न कमांड झांसी जिसका रिजल्ट क्यू-2 आया और दूसरा कोर्स कम्पनी वेपन कोर्स सागर मध्य प्रदेश जिसका रिजल्ट क्यू-1आया ये वेब किया. बलवंत सिंह के अनुसार इसके बाद उनको वॉलेंटर के पैरा में डिमांड पर 1सितंबर 1945 से 12 फरवरी 1946 तक पैरा सेंटर रावलपिंडी में अपनी सेवाएं दी.इसके बाद 13फरवरी 1946 से 21फरवरी 1947 तक तृतीय पैरा इंडिपेन्डेन्ट ब्रिगेड क्वेटा व वजिरास्थान (जो अब पाकिस्तान में है) वहाँ अपनी ड्यूटी निभाई. इसके बाद 22 फरवरी 1947 से 17 अप्रैल 1947 तक रॉयल गढ़वाल रेजीमेंट सेंटर लैंसडाउन में ड्यूटी के लिए तैनात रहे.  वही 18 अप्रैल 1947 से 6 नवंबर 1950 तक 218 गैराज कंपनी शाहजहांपुर में सेवाएं दी.जबकि 7 नवंबर 1950 से 18 नवंबर 1952 तक आठवीं बटालियन गढ़वाल राइफल में कार्यरत रहे. उसके बाद 19 नवंबर 1952 से 10 नवंबर 1956 तक तृतीय पैरा रेजिमेंट सेंटर आगरा में तैनाती मिली. अब 11 नवंबर 1956 से 4 मई 1968 तक 10 गढ़वाल राइफल लैंसडाउन से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त लेकर BSF में इंस्पेक्टर के पद पर रहते हुए 1980 में रिटायर्ड हुए. सूबेदार बलवंत सिंह रावत के अनुसार उन्हें आर्मी के सेवाकाल को आजादी से पूर्व मानते हुए पेंशन लाभ गैलंट्री अवॉर्ड आजादी से पूर्व दूसरे वर्ल्ड वार के लाभ से वंचित रखा गया है.जबकि तत्समय से उन्हें सम्पूर्ण पेंशन का लाभ मिलना चाहिए था.जो नहीं मिल रहा हैं.

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खबर सनसनी डेस्क

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