
सरकारी जमीनों पर कब्जे करने की मुहिम आखिर कैसे हुई कामयाब?…फर्जी दस्तावेजों से बने ग्राम प्रधानों की जांच का काम भी अधूरा ?..आखिर किसने दिया डेमोग्राफी चेंज को संरक्षण ?
देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून जनपद में परिवार रजिस्टरों में एक षडयंत्र के तहत हेर-फेर करके एक विशेष समुदाय की आबादी का विस्तार किये जाने की बड़ी रिपोर्ट सामने आ रही हैं ? ये मामला प्रारंभिक जांच में सामने आया है.ऐसे में शासन-प्रशासन ने इसके पीछे किस-किस की भूमिका है, इस तरफ़ गहनता से जांच पड़ताल करने की कार्रवाई शुरू कर दी हैं.
हिमाचल और यूपी सीमा के बीच बसा हुआ पश्चिम देहरादून जिले का क्षेत्र जिसे पछुवादून भी कहते है,यहां डेमोग्राफी चेंज की समस्या उत्तराखंड सरकार के लिए चिंता का विषय बन चुकी है.बताया जा रहा हैं यूपी से आई विशेष समुदाय की जनसंख्या ने यहां की सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा कर बसावट करना जारी रखा हुआ है. आरोप हैं कि इन इलाकों में ग्राम पंचायत की जमीनों पर विशेष (धर्म) आबादी को बसाने में स्थानीय ग्राम प्रधानों,प्रधान पतियों की भूमिका सामने आई है. साथ ही ग्राम पंचायत अधिकारियों की भूमिका को भी संदेह की नजरों से देखा जा रहा हैं..
जानकारी में आया कि बाहर से आई विशेष समुदाय की आबादी ने पछुवा दून की नदी,नहरों के किनारे और वन विभाग की जमीनों पर अवैध रूप से कच्चे पक्के मकान खड़े कर लिए है. और अब इनके आधार कार्ड,वोटर लिस्ट में नाम दर्ज किए जा रहे है. इस काम में ग्राम प्रधानों और जिला पंचायत सदस्यों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है..
जानकारों के मुताबिक कभी पछुवा देहरादून के 28 गांव जो कभी हिंदू बाहुल्य हुआ करते थे, अब वो विशेष समुदाय बाहुल्य हो गए है.आरोप हैं कि आबादी की घुसपैठ का ये खेल कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ, जो अब तक बदस्तूर चल रहा है.इन ग्राम पंचायतों में विशेष समुदाय के प्रधानों की हुकूमत चल रही है जो कभी भी मूल रूप से उत्तराखंड के निवासी थे ही नहीं.आरोप हैं कि यूपी,बिहार, असम,बंगाल,यहां तक की बंग्लादेशी और म्यामार जैसे देशों के रोहिग्या आबादी यहां पछुवा दून में आकर कैसे बसती चली गई? इस सवाल का जवाब प्रशासन ने गंभीरता से ढूंढना शुरू कर दिया है.
जानकारों के मुताबिक देहरादून जिले में प्रेम नगर से हिमांचल पोंटा साहिब तक तक जाने वाली शिमला बाई पास, चकराता रोड के आसपास के इलाकों में देवभूमि उत्तराखंड का सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक स्वरूप बिगड़ चुका है। मुख्य मार्गो पर फड़ खोको के कब्जे है, और उनके पीछे अवैध रूप से आबादी बस चुकी हैं.बताया जा रहा हैं कि इन इलाकों में सरकारी जमीनों पर 100 से ज्यादा विशेष समुदाय के धार्मिक संरचनाओं की ऊंची मीनारें दिखाई देती है.
आखिर ऐसा कैसे हुआ कि पिछले कुछ सालो में ये इलाका एकाएक बदल गया.और यहां हिंदू अल्पसंख्यक होते चले गए और विशेष समुदाय की आबादी ने पूरे क्षेत्र में बहुसंख्यक होती गई !..




क्या लचर भू कानून बना वजह ?..
जानकारी के अनुसार उत्तराखंड,यूपी की सीमा वाला ये क्षेत्र हिमाचल से लगता है..हिमाचल ने सख्त भू कानून की वजह से कोई भी बाहरी व्यक्ति वहां जमीन नही खरीद सकता. और न ही कब्जे कर सकता है। मुस्लिम आबादी वहां बाग बगीचे में कारोबार करने जाती है, और अस्थाई रूप से रहती है. और फिर वापिस चली जाती है.लेकिन उत्तराखंड में ऐसा नहीं है,जिसका फायदा उठाते हुए बाहरी राज्यों से आये विशेष समुदाय इस क्षेत्र में अपनी अवैध बसावट कर ली,और जहां मौका मिला वहां जमीनों पर कब्जे कर लिए हैं. आरोप ये भी लगाए जा रहे है कि पहले कुछ विशेष समुदाय के लोग यहां हिंदू बाहुल्य गांवों में आकर बसे,और फिर धीरे धीरे वो अपने साथ अपने रिश्तेदारों को लाकर यहां बसाने लगे. फिर वो धन बल और वोट बैंक के बलबूते ग्राम प्रधान बनते चले गए,और उन्होंने ग्राम सभा की सरकारी जमीनों पर अपने समुदाय के रिश्तेदारों को लाकर बसाना शुरू कर दिया. ताकि उनका वोटबैंक और मजबूत होता जाए.इतना ही नहीं इन इलाकों में विशेष समुदाय के धार्मिक संरचनाओं का भी खूब निर्माण होता रहा. यानि सरकारी जमीनों को कब्जाने का षड्यंत्र रचा गया,जो आज भी जारी है.हालांकि अब उत्तराखंड की मौजूदा सरकार जरूर अवैध अतिक्रमण और सरकारी भूमियों के कब्जों को खाली कराने में जुटी हैं.लेकिन लंबे समय से पछवादून में अवैध कब्जों का खेल सरकार की सिंचाई,पीडब्ल्यूडी और वन विभाग की जमीनों पर भी धन बल और वोट बैंक की राजनीति के दमखम पर जारी है. इस खेल में सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओ का भी संरक्षण मिलता रहा है.
जानकारों के अनुसार राजनीति संरक्षण के पीछे बड़ी वजह यहां की नदियों में चल रहा वैध अवैध खनन है, जहां हजारों की संख्या में विशेष समुदाय ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है जो कि यहां के राजनीति से जुड़े नेताओ को धन बल की आपूर्ति करते है।
उत्तराखंड सरकार या शासन ग्राम सभाओं की जमीनों की जिस दिन गंभीरता से जांच करवा लेगी तो उसे मालूम चल जाएगा कि उसकी ग्राम सभाओं की जमीन आखिर कहां चली गई? कहां बिक बिका का ठिकाने लगा दी गई? इन 28 गांवों के परिवार रजिस्टरों में कैसे बाहरी लोगों के नाम चढ़ते चले गए ? इस पर सवाल उठने लाजमी है ?..
हिमाचल बॉर्डर से सटे ढकरानी में शक्ति नहर किनारे अवैध कब्जे हुए, धामी सरकार ने दो चरणों में इन अतिक्रमण को ध्वस्त किया, और इसमें कई धार्मिक स्थल भी हटाएं.उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने अपनी जमीन उन्हें तारबाड़ से सुरक्षित नही की.अब यहां उत्तराखंड सरकार को सोलर प्रोजेक्ट लगाने है तो देहरादून जिला प्रशासन का बुल्डोजर गरजने लगा, यहां 700 से ज्यादा मकान ध्वस्त किए. लेकिन यहां रहने वाली आबादी उत्तराखंड छोड़ कर नहीं गई वो आसपास ही विशेष समुदाय नेताओं के संरक्षण में फिर से अवैध कब्जे हो रहे है.और इस बार वो पीडब्ल्यूडी,वन विभाग की जमीनों पर बस रही है.
इसी तरह सहसपुर,जीवन गढ़, तिमली,हसनपुर कल्याणपुर, केदाखाला, सरबा आदि ग्रामों की हालत है, जहां ग्राम सभाओं की सरकारी जमीनों पर विशेष समुदाय बाहरी आबादी के लोगों यहां के प्रधानों ने लाकर बसा दिया हैं.
सूत्र बताते है कि यहां कब्जेदारों ने राशन कार्ड,आधार कार्ड और वोटर आईडी सब बनवा लिए है.जिसमें ग्राम प्रधान की मोहर की भूमिका,संरक्षण देने वाली रही है।
प्रधानों के फर्जी दस्तावेज
ऐसी चर्चा भी है कि ढकरानी और सहसपुर के ग्राम प्रधानों ने कथित रूप से अपने फर्जी दस्तावेजों के जरिए ही अपना पिछला कार्यकाल काट लिया, और इनके मामलें अदालती कार्रवाई में लटके हुए है. इन्हे किसका संरक्षण मिला ये सवाल भी उठ रहे है?..
धार्मिक संरक्षण का खेल
जानकार बताते है कि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से यहां हो रहा हैं,और इसके पीछे राजनीतिक शक्तियां ही नहीं धार्मिक शक्तियां भी काम कर रही है.इसी वजह से विशेष समुदाय की संस्थाएं यहां पूरी तरह से अपने धर्म से जुड़े संरचनाएं बनाने में सक्रिय है. और इसी के जरिए यहां विशेष समुदाय को संचालित किया जा रहा है. इसके अतिरिक्त जानकारों के अनुसार विशेष समुदाय सेवा संगठन और अन्य संगठनों के माध्यम से राजनीति धार्मिक ताकत को तेजी से बढ़ाया जा रहा है.ग्राम सभाओं पर इनका नियंत्रण हो चुका है,आगे जिला पंचायत,फिर विधान सभा सीटों में इनका असर दिखाई देगा.ऐसे ही नही यहां विशेष समुदाय राजनीतिक पार्टी या उनकी यूनिवर्सिटी की आवाज़ पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान सुनाई दी थी.आरोप हैं कि इसके पीछे बहुत बड़ी साजिश दिखलाई देती है !!..
वन विभाग के अधिकारी खामोश ?
पछुवादून में नदियों किनारे अवैध रूप से बसाए गए लोगों को हटाने केनिर्देश कई बार मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा दिए गए.किंतु इसका असर क्षेत्र के डीएफओ, वन निगम के अधिकारियों में नही दिखाई दिया. कभी फोर्स न होने देने का बहाना तो कभी वीआईपी ड्यूटी के बहाने देकर ये अभियान ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते है. विभागीय लापरवाही का आलम ये है कि अभी तक सरकारी विभागों ने इन अवैध कब्जेदारों को नोटिस तक जारी करने की जहमत नहीं उठाई हैं..
सीएम पुष्कर सिंह धामी का बयान
परिवार रजिस्टर में गड़बड़ झाला सवाल पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि शासन-प्रशासन के संज्ञान में ये विषय आए है. इसकी गहनता से जांच पड़ताल कराई जा रही है.हम यहां डेमोग्राफी चेंज नहीं होने देंगे.CM ने कहा कि अवैध कब्जों को खाली करवाया जाएगा और यहां गहनता से सत्यापन कराया जा रहा हैं. ताकि आगे की कार्रवाई सुनिश्चित की जा सकें..
